बीते वर्ष की दो बड़ी विभीषिकाएँ

>> Thursday, January 6, 2011

  1. 07 जून 2010 को भोपाल गैस त्रासदी के साढ़े पच्चीस वर्ष बाद भोपाल की अदालत ने फैसला
07 जून 2010 को भोपाल गैस त्रासदी के साढ़े पच्चीस वर्ष बाद भोपाल की अदालत ने फैसला सुनाया जिसमें लाखों लोगों के जीवन को बुरी तरह दे प्रभावित करने तथा हजारों लोगों की जान लेने वाली इस भीषणतम दुर्घटना के 8 दोषियों को मात्र दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गयी जबकि इस दुर्घटना का मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन लिमिटेड के तात्कालीन सी.ई.ओ. वारेन एंडरसन को मध्य प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने दुर्घटना के चंद घंटों बाद ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसके देश अमेरिका में भिजवा दिया था और आज वह अमेरिका में आनंद का जीवन व्यतीत कर रहा है| इस मामले में राजनीतिज्ञों , प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायाधीशों सभी की भूमिका नकारात्मक रही | 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी शासन की बर्बरता का सबूत मिला था जब अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने जलियावाला बाग़ में शांतिपूर्ण सभा कर रहे लोगों को बिना चेतावनी दिए अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी जिसमें दो हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी थी लेकिन तब तो एक विदेशी सरकार हम पर शासन कर रही थी जबकि 1984 में तो हमारी खुद की सरकार थी पर हजारों हत्याओं के मुख्य दोषी को तो हमारे नेताओं सुरक्षित उसके देश पहुंचा दिया जबकि हमारी न्यायपालिका ने अन्य दोषियों को 26 साल बाद मात्र दो साल की कैद सुनाई, बची खुची क़सर भ्रष्ट नेताओं एवं अधिकारियों ने प्रभावितों को उचित मुआवजा तथा सुविधाएं न देकर पूरी कर दीं | निश्चित ही यह दुर्घटना तथा उस पर ऐसा अन्यायपूर्ण न्याय हमारे देश के लिए एक कलंक है |

2. भारत में स्वदेशी आन्दोलन के उत्प्रेरक, आजादी बचाओ आन्दोलन के प्रणेता एवं भारत स्वाभिमान संगठन के तात्कालीन सचिव राजीव दीक्षित जी की मृत्यु

इसी प्रकार एक अन्य दुर्घटना 30 नवंबर 2010 को घटी, यह दुर्घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी, जब भारत में स्वदेशी आन्दोलन के उत्प्रेरक, आजादी बचाओ आन्दोलन के प्रणेता एवं भारत स्वाभिमान संगठन के तात्कालीन सचिव राजीव दीक्षित जी की मृत्यु हो गयी | यह देश के लिए ऐसी हानि है, जिसकी पूर्ति वास्तव में संभव नहीं है, एक वैज्ञानिक होने के बावजूद उन्हें भारत के अतीत एवं वर्तमान के प्रत्येक पहलू की पूरी जानकारी थी, कोई भी व्यक्ति यदि उसमें जरा भी देश प्रेम की भावना है राजीव जी के विद्वतापूर्ण एवं चमत्कारिक भाषण को एक बार सुनकर उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था| चार -पांच माह पहले मुझको राजीव जी के भाषण को सुनने का सुअवसर मिला था जब वे मैहर आये थे | जब भी किसी समाज अथवा देश में बुराइयाँ बढ़ती हैं तो वहां पर एक महापुरुष का आगमन होता है जोकि उस समाज को सही दिशा देता है लेकिन लगता है की भारतमाता को यह मंज़ूर नहीं था इसीलिए उन्होंने हम सब के बीच से भारत के इस महान सपूत को इतनी जल्दी वापस बुला लिया |
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, मीडिया किसी भी देश के लोगों की आवाज होती है जोकि उस आवाज़ को संविधान के दूसरे स्तंभों तक पहुंचाती है लेकिन यदि यही मीडिया किसी मुद्दे पर चुप्पी साध ले तब तो आम जन असहाय हो जायेगा | इस दुर्घटना में मीडिया का कुछ ऐसा ही रवैया रहा है | राजीव जी की मृत्यु की खबर मुझ तक 05 दिनों बाद पहुंची थी वह भी किसी व्यक्ति के द्वारा | वर्तमान में भारत के सबसे विद्वान राष्ट्रभक्त की मृत्यु की खबर किसी भी समाचार चैनल तथा किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं हुई | यह बात कैसे संभव है कि बहुत सारे घोटालों का खुलासा करने वाली मीडिया को इस दुर्घटना की खबर नहीं लगी, क्या राजीव जी पत्रकारिता की परिधि के बाहर थे, क्या वे राष्ट्र प्रेम की उस सीमा को भी पार कर चुके थे जिस सीमा के आगे पत्रकारिता का स्वरूप बौना हो जाता है, मेरा मानना है की इस अर्थ प्रदान युग में बहुत से धन लोलुप एवं विदेश प्रेमियों का राजीव जी के स्वदेशी आन्दोलन से नुकसान हुआ होगा इसलिए यदि किसी एक समाचार पत्र या चैनल अथवा कोई एक मीडिया समूह अथवा मीडिया का एक विशेष वर्ग यदि इस खबर की अनदेखी करे तो बात समझ में आती है लेकिन यदि पूरा मीडिया ही इस खबर की अनदेखी कर रहा है तो उसका अर्थ यही है की कोई एक ऐसा तत्त्व है जोकि मीडिया द्वारा दी जा रही खबरों पर नियंत्रण रखता है, तथा अपने लिए हानिप्रद खबरों को आम जन तक पहुँचने से रोकता है |

The above content has been written  by  DEWANSHU THE GREAT read full at his blog


| More

1 comments:

Anonymous,  January 8, 2011 at 3:02 AM  

Devanagari does not work here when i try to post from my worldpress id?
i totally agree with you dewanshu .
when i was 8-12 year old he came to my town i did not even saw his face but then also his thought of "swadeshi" came to me as guidance of god i did not even knew his name but from that day onward i stopped using foreign toothpaste ,drinks and some other things also i asked my friends to do so ,after a few years as i remember i heard his audio being played at some mela but then after 10-2 years i saw him on t.v. and to my surprise i recognized him by his face my eyes rushed to the bottom line of astha channel in search of his name and there i saw the treble news he had left 8 hrs ago ...even though i did not know him personally or ever heard him after mela but felt a person really close to me had gone .BUT his sacrifice will not go vain let the 2014 election come if we have to clean this political mess we will have to get our hands dirty come on every one go out and not only vote but do as much as you can spread awareness about swadeshi take the list of swadeshi goods and tell every one to use swadeshi as much as ...media has gone to such a ugly depth that there is no word left i can say so that left us with only one option to take burden on our self the easiest would be to tell your friends ,yes they may think you crazy for a weak or so but in the last they will join hands with you.
jai bharat...jai bharat swabhiman

Post a Comment