पेप्सी बोली कोका कोला - विदेश से मैं आयी हूँ, साथ मौत को लायी हूँ ।

>> Friday, May 6, 2011

पेप्सी बोली कोका कोला ! भारत का इन्सान है भोला ।


विदेश से मैं आयी हूँ, साथ मौत को लायी हूँ ।


लहर नहीं ज़हर हूँ मैं, गुर्दों पर बढ़ता कहर हूँ मैं ।


मेरी पी.एच. दो पॉइन्ट सात, मुझ में गिर कर गल जायें दाँत ।


जिंक आर्सेनिक लेड हूँ मैं, काटे आँतों को, वो ब्लेड हूँ मैं ।


मुझसे बढ़ती एसिडिटी, फिर क्यों पीते भैया-दीदी ?


ऐसी मेरी कहानी है, मुझसे अच्छा तो पानी है ।


दूध दवा है, दूध दुआ है, मैं जहरीला पानी हूँ ।


हाँ दूध मुझसे सस्ता है, फिर पीकर मुझको, क्यों मरता है ?


540 करोड़ कमाती हूँ, विदेश में ले जाती हूँ ।


शिव ने भी न जहर उतारा, कभी अपने कण्ठ के नीचे ।


तुम मूर्ख नादान हो यारो ! पड़े हुए हो मेरे पीछे ।


देखो इन्सां लालच में अंधा, बना लिया है मुझको धंधा ।


मैं पहुँची हूँ आज वहाँ पर, पीने का नहीं पानी जहाँ पर ।


छोड़ो नकल अब अकल से जीयो, जो कुछ पीना संभल के पीयो ।


इतना रखना अब तुम ध्यान, घर आयें जब मेहमान ।


इतनी तो रस्म निभाना, उनको भी कुछ कस्म दिलाना ।


दूध जूस गाजर रस पीना, डाल कर छाछ में जीरा पुदीना ।


अनानास आम का अमृत, बेदाना बेलफल का शरबत ।


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3 comments:

Anonymous,  May 7, 2011 at 6:04 AM  

Wah !! Satya ka varnan karti hui ek kavita !! wah !!

Unknown May 9, 2011 at 11:56 PM  

many many thanks to the writer.
Iss Kavita ka koi jawab nahi.

very much informative.

Ajay IIT Kgp

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