डरपोक थे पंडित नेहरू : प्रो. टेंग
>> Monday, January 31, 2011
*डॉ. मोहन कृष्ण टेंग कश्मीर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व
अध्यक्ष हैं। वे दिसम्बर 1991 में विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने
जम्मू-कश्मीर समस्या का गहनतम अध्ययन किया है। उनकी कश्मीर मामले पर कई
पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं; जिनमें- कश्मीर अनुच्छेद-370, मिथ ऑफ
ऑटोनामी, कश्मीर स्पेशल स्टेटस, कश्मीर : कांस्टीट्यूशनल हिस्ट्री एंड
डाक्यूमेंट्स, नार्थिएस्ट फ्रंटियर ऑफ इंडिया, प्रमुख हैं। उनका मानना है कि
कश्मीर की वर्तमान समस्या के पीछे पंडित नेहरू और भारत का राजनैतिक प्रतिष्ठान
प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है।
पंडित नेहरू कश्मीर की वर्तमान स्थित के लिए कहां तक जिम्मेदार हैं?*
21 अक्टूबर 1947 को छद्म पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। 22
तारीख को सुबह पांच बजे पाकिस्तानी सेना पूरे मुजफ्फराबाद में फैल चुकी थी। इस
संदर्भ में भारत सरकार का कहना था कि इसकी सूचना उसे 26 तारीख को मिली। जबकि 22
तारीख को 10.30 बजे अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के टेबल पर
पाकिस्तानी सेना के दाखिले की सूचना लिखित रूप से पहुंच चुकी थी। इसके बावजूद
नेहरू की हिम्मत नहीं थी कि वे गवर्नर जनरल से बातचीत करते। इसकी चर्चा दूसरे
दिन लंच मीटिंग के दौरान हुई।
*तो आपका कहना है कि पाकिस्तानी आक्रमण के खिलाफ नेहरू ने फैसला लेने में पांच
दिन लगा दिए?*
हां, यदि उन्होंने सूचना मिलने के तुरंत बाद इसके खिलाफ कार्रवाई की होती; तो न
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की समस्या उत्पन्न होती और न ही इस आक्रमण में इतने
लोग मारे गए होते। इन पांच दिनों में 38 हजार लोग मारे गए। इसमें हिंदू, सिख और
शामिल थे। आप कल्पना कर लीजिए, यह कोई छोटी बात नहीं है। यही नहीं
नेहरू ने दूसरी बड़ी गलती यह की कि एक ओर जब भारतीय सेना पाकिस्तानी
आक्रमणकारियों को खदेड़ रही थी तो बीच में ही जीती हुई लड़ाई को वे संयुक्त
राष्ट्र संघ में ले गए। उनमें लड़ने की हिम्मत नहीं थी, वह डरपोंक थे।
अध्यक्ष हैं। वे दिसम्बर 1991 में विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने
जम्मू-कश्मीर समस्या का गहनतम अध्ययन किया है। उनकी कश्मीर मामले पर कई
पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं; जिनमें- कश्मीर अनुच्छेद-370, मिथ ऑफ
ऑटोनामी, कश्मीर स्पेशल स्टेटस, कश्मीर : कांस्टीट्यूशनल हिस्ट्री एंड
डाक्यूमेंट्स, नार्थिएस्ट फ्रंटियर ऑफ इंडिया, प्रमुख हैं। उनका मानना है कि
कश्मीर की वर्तमान समस्या के पीछे पंडित नेहरू और भारत का राजनैतिक प्रतिष्ठान
प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है।
पंडित नेहरू कश्मीर की वर्तमान स्थित के लिए कहां तक जिम्मेदार हैं?*
21 अक्टूबर 1947 को छद्म पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया। 22
तारीख को सुबह पांच बजे पाकिस्तानी सेना पूरे मुजफ्फराबाद में फैल चुकी थी। इस
संदर्भ में भारत सरकार का कहना था कि इसकी सूचना उसे 26 तारीख को मिली। जबकि 22
तारीख को 10.30 बजे अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के टेबल पर
पाकिस्तानी सेना के दाखिले की सूचना लिखित रूप से पहुंच चुकी थी। इसके बावजूद
नेहरू की हिम्मत नहीं थी कि वे गवर्नर जनरल से बातचीत करते। इसकी चर्चा दूसरे
दिन लंच मीटिंग के दौरान हुई।
*तो आपका कहना है कि पाकिस्तानी आक्रमण के खिलाफ नेहरू ने फैसला लेने में पांच
दिन लगा दिए?*
हां, यदि उन्होंने सूचना मिलने के तुरंत बाद इसके खिलाफ कार्रवाई की होती; तो न
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की समस्या उत्पन्न होती और न ही इस आक्रमण में इतने
लोग मारे गए होते। इन पांच दिनों में 38 हजार लोग मारे गए। इसमें हिंदू, सिख और
शामिल थे। आप कल्पना कर लीजिए, यह कोई छोटी बात नहीं है। यही नहीं
नेहरू ने दूसरी बड़ी गलती यह की कि एक ओर जब भारतीय सेना पाकिस्तानी
आक्रमणकारियों को खदेड़ रही थी तो बीच में ही जीती हुई लड़ाई को वे संयुक्त
राष्ट्र संघ में ले गए। उनमें लड़ने की हिम्मत नहीं थी, वह डरपोंक थे।
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