राजीव दिक्सित के लेक्चर का लिखती रूप - भाग १
>> Thursday, December 30, 2010
में यहाँ आया आप से कुछ कहने, कुछ गंभीर बाते कहने | हाला कि इस देश में परम्परा टूट गई हैं गंभीर व्याख्यानों की , गंभीर भाषणों की | आज कल इस देश में जो भाषण होते हैं , मुझे लगता नहीं है कि इस देश को कोई दिशा दे प् रहे | न देश के बिच न पार्लियमेंट के अंदर | दिशाहीन वियक्ति कभी देश को दिशा नहीं दे पाते | मेरा जेसे आदमी को इस काम में लगना पड़ा , मैं कोई खुशी से नहीं लगा | देश कि परस्थितियाँ , देश के हालात, बड़ते हुए देश के ऊपर उन्ताराष्ट्रीय दबाव, बड़ती हुई गरीबी, बेरोजगारी | ये तमाम कारण है जो मेरे जेसे नोजवान को अंदर से बहुत परेशान किया हैं | मेरे सोचने के ढंग में कुछ अंतर है | किसी समस्या को समजने के लिए मैं इस की गहराई में जाता हूँ | क्योंकि में विज्ञानं व् तकनिकी का विद्यार्थी रहा हूँ | विज्ञानं के विद्याथी होने के नाते, जब तक किसी समस्या के हिस्टोरिकल एक्सपेक्ट को में समज नहीं लेता तब तक मुझे वह समस्या समज नहीं आती | इस देश में वर्तमान में जो परेशानियां हैं, उन परेशानियों को में वैसे ही समजने की कोशिश की हैं | ओर इस देश की समस्याओं को समजने के लिए मैने २०००० से ज्यादा दस्तावेज इकठे किये हैं | ये दस्तावेज इंडिया लाइब्ररी लन्दन के हैं , ब्रिटिश लाइब्ररी के हैं व् विश्व के दूसरी लाइब्ररी से निकली हुई हैं | और उनके आधार पर मेरी जो समज बनी वही आप से शेयर करने आया हूँ | वो सही भी हो सकती है ओर गलत भी हो सकती हैं , और आप को कहीं भी कोई गलती लगे तो मुझे सुधरने की कोशिश करे |
rest next time.....
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1 comments:
hum sabhi ko rajiv ji ki mratyu se bahut hi dukh hua hai aur hum sabhi unke liye awaaz uthana chahte hain ,internet par to hum ekjut ho sakte hain par jo log internet ki duniya se abhi door hain unhein khud se jodne ke liye mere paas ek vichaar hai ki kyon na hum sabhi rajiv ji ke janmdin aur holi, deepawali ,nav-varsh jaise awsaron par apne- apne shahar ke akhbaron mein rajiv ji ka chitra sahit unke vicharon ko chhapwayein?
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